vrishka ropan



आज धरती  अपने श्रृंगार के लिये पुकार रही थी उसी से प्रेरणा लेकर पत्रं लिखा और वन विभाग से फलदार वृक्ष लाया। काम देखने मे आसान था पर भारतवर्ष में सरकारी मशीनरी से काम करवाना दीवार में सिर फोडने के समान है सरकारी बाबू बाधा रेस के पीएचडी धारक है मै उनको डाक्टर कहता हॅू वे ही बााधा खडी करते है और वही समाधान भी बताते है मतलब कि आदमी अभिभूत हो जाये कि उसने क्या सोचा था पर हकीकत तो और ही है और वो बस सरकारी बाबू ही जानता वो आपको लाजबाब कर देगा और आप सोचेगे कि आपने तो व्यर्थ ही धरती पर जन्म लिया खैर जैसे-तैसे पेड प्राप्त किये और लोगो को वृ़क्षारोपरण के लिये तैयार किया। काफी पहले एक कार्यक्रम चला था फ्रूट फार फयूचर और उसमें भी हमने वहुतेरे फलदार पौधे लगाये थे आज उसके फल बच्चे खा रहे है और आज जो फल हम खा रहे हे वो हमारे पूर्वजो ने लगाये थे । चन्द्रगुप्त ने सारे भारत में सड़क के किनारे पेड़ लगवाये थे किसी भी देश मे ंसफल आर्थिकी के लिंये एक तिहाई भूभाग में पेड़ होने चाहिये सेटेलाइट इमेज से पता चलता है कि वनो का रकबा बडा है। भारतीय वाग्मय में कहा गया है कि एक वृक्ष सोै पुत्र समान ,पर्यावरण से इतनी करीबी आत्मीयता शायद ही किसी देश या संस्कृति में दिखाई देती हो। हिमांचल में मुख्यमंत्री परमार ने सेब के बगान लगाने मंे मनोयोग से योगदान दिया जो आज भी दिखता है वहॉ के लोगो की आर्थिकी इसी से बढी। फ्रूट फार फयूचर  योजना को पूरे भारत में अपनाने की आवश्यकता है। जब गेहॅ की कमी हुई थी तो प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री जी ने कहा था कि मेडो तक पर गेहॅू उगाओं, वैसे भी आज का यूवा खेती में कम रूचि ले रहा है तो फलदार वृक्ष एक अच्छा विकल्प हो सकते है।

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