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आदित्य  धरती की गोद से निकलता हुआ एक यान आदित्य अपने स्वंयनाम को धन्य करता हुआ सूरज की ओर बढता जाता है यह यात्रा मानो  अपने को जानने की है क्योकि सूरज को भारतीय साहित्य में पिता का दर्जां दिया गया है कितना जान पाते है हम अपने पिता को अगर एक रोज सूरज धरती पर न उगे तो शायद हम अपने होने के अहसास को महसूस भी न कर सके उसकी आभा का प्रभामंडल का ही चमत्कार है कि हम बस सरलता से जीवन जीते चले जाते है कभी -कभार उसपर ग्रहण लग जाता है तब हमे अहसास होता है कि हम खगोलीय धटनाओं के एक बिन्दु मात्र है  धरती पर 8 मिनट मे सूरज से चली किरण आती है और अरबो साल से ऐसा ही होता आया है शाम को जब सूरज की दीप्तता समाप्त हो जाती है तोे लगता है कि कुछ छूट गया है और खूबसूरती इसमें ही है कि सूरज की अनुपस्तिथि में ही हमे आराम करना होता है और हमारी जैव धडी उसी प्रकार काम करती है भले ही हमने बिजली का अविष्कार कर लिया हो पर विकासक्रम मंे अर्जिंत आदते  उसी प्रकार विकसित हुइ है। सूरज को करीब से जानने की जिज्ञासा हमेशा से रही है सबसे पहले सोहो यान अमेरिका ने 02 दिस1995 को भेजा इसके बाद पारकर सोलर प्रोब 12 अगस्त 2018 को भेजा